आई नोट , भाग 29
अध्याय-5
पहला दावं
भाग-3
★★★
2 घंटे बीत जाने के बाद भी आशीष अपनी आलीशान कुर्सी पर बैठा मानवी की फोटो को ही देखता जा रहा था। रात हो चुकी थी मगर उसने मानवी की फोटो को देखना नहीं छोड़ा। तभी उसके फोन की घंटी बजी। आशीष ने मानवी की फोटो की तरफ देखते हुए ही फोन उठाया और कहा
“हां हेलो”
उसके कहते ही सामने से आवाज आई “तुम्हें अभी धरती से निकल कर उस पर चलते हुए 2 दिन भी नहीं हुए कि तुम अपनी औकात पर आ गए।”
यह सुनते ही आशीष के चेहरे के भाव बदल गए और वह गुस्से से भर गया। उसने अपनी आंखें बंद की और शांत स्वर से कहा “अब मैंने क्या किया पिता जी।”
“बताता हूं तुम्हें, घर आओ तुम। जो भी बात है वह फोन पर नहीं हो सकती।” आशीष के पिता ने कहा और फोन काट दिया।
आशीष ने फोन रखा और अपनी जगह से खड़ा होता हुआ बाहर लिफ्ट की तरफ जाने लगा। लिफ्ट की तरफ जाते जाते वह अपने मन में बोला “मानवी, तुम्हें पता है मेरे पिता मेरी बीती जिंदगी के सबसे बड़े दुश्मन हैं। इतने बड़े दुश्मन की अगर मुझे उनकी जान लेनी हो तो किसी खास तरह के वजह की जरूरत भी ना पड़े। डरो मत मानवी, मैं ऐसा कुछ भी नहीं करने वाला। एक इंसान कभी भी अपने पिता को नहीं मार सकता।”
उसने लिफ्ट पकड़ी और ग्राउंड फ्लोर की ओर जाने लगा। “लेकिन मानवी, मुझे यह भी बताओ, अगर कभी कभी मामला हद से ज्यादा हो जाए तो इंसान को क्या करना चाहिए। अब तुम मेरे पिता को ही देख लो।”
लिफ्ट खुली और वह अपने कार की तरफ जाने लगा। बीच में ही उसने ड्राइवर को फोन करके बुला लिया। ड्राइवर उसके फोन करते ही गाड़ी के पास आकर खड़ा हो गया था।
गाड़ी की तरफ जाते हुए आशीष ने अपनी मन वाली बात को आगे जारी रखते हुए कहा “मेरे पिता को अच्छी तरह से पता है उन्होंने मेरे साथ क्या किया, बचपन में मुझे जिस तरह की जिंदगी चाहिए थी उन्होंने उसके साथ खिलवाड़ किया, लेकिन इसके बावजूद ना तो वह अपनी गलती मानते हैं, ना ही अब बड़े होने के बाद मुझे मेरी जिंदगी जीने देते हैं। मेरी शादी तक के फैसले भी उन्हें करने हैं।”
आशीष कार में बैठ गया। कुछ ही देर में उसकी कार सड़क पर चल रही थी। उसने कार में बैठे बैठे अपने मन में कहा “कम से कम शादी जैसे फैसले को तो उसके हाथ में होना चाहिए जिसे शादी करनी है। माना कि लड़की अच्छी है, ठीक है स्नेहा में कोई बुराई नहीं थी, मगर मानवी, यार मानवी मैं नहीं पसंद करता उसे। नहीं पसंद आई वह मुझे। मुझे पसंद आई तो तुम। तुम शादीशुदा थी जबकि वह, उसने तो अभी शादी के सपने भी नहीं देखे होंगे। तुम्हारी डिग्री और उसकी डिग्री में जमीन आसमान का फर्क है। तुमने यही पर पढ़ाई लिखाई की है मगर वह बाहर से पढ़ कर आई है। तुम मिडल क्लास फैमिली में एक स्ट्रगल करने वाली लड़की हो, जबकि वह इतनी अमीर है कि तुम्हारी जैसी हजारों को खरीद ले। मैं इंसल्ट नहीं कर रहा, एक नॉर्मल बात कही है मानवी। इतनी सारी खूबियां होने के बावजूद मैंने उसे रिजेक्ट करके तुम्हें पसंद किया। क्यों, क्योंकि मेरी पसंद ऐसी ही होती है। अलग। भगवान ने मुझे पसंद आने वाली चीजों को लिमिटेड रखा है, और यह चीज अब किसी से भी छुपी नहीं।”
इसके बाद आशीष ने सोचना बंद किया और अपनी आंखें बंद कर कार में पीछे की तरफ हो गया। काफी देर के सफर के बाद ड्राइवर ने गाड़ी उसके महल जैसे घर के सामने मोड़ वाली सड़क पर लाकर रोक दी।
गाड़ी के रुकते ही आशीष नीचे उतरा तो देवराज उसे उसकी तरफ आते हुए दिखा। देवराज ने आशीष के पास आते ही चेतावनी देते हुए कहा “बुरा मत मानिएगा सर, मगर मुझे नहीं लगता आपका उनसे मिलना ठीक रहेगा। इस वक्त के लिए तो बिल्कुल भी नहीं।”
आशीष घर के अंदर की ओर जाने लगा। उसने घर के अंदर जाते हुए पूछा “मगर ऐसा क्यों? ऐसा क्या हो गया घर में?”
“वो... वह अभी कुछ देर पहले हर्षवर्धन जी का फोन आया था। उन्होंने बताया था कि स्नेहा ने शादी से मना कर दिया है। सिर्फ मना ही नहीं किया बल्कि यह भी कहा है कि आपने काफी सारी बदतमीजी की है।”
देवराज ने यह कहा तो आशीष अपनी जगह पर खड़ा हो गया। अपनी जगह पर खड़े होने के बाद उसने देवराज की तरफ देखा और कहा “बदतमीजी और वो भी मैंने, क्या बकवास है यार, तुम्हें पता है ना मैं यह सब नहीं करता, करना तो दूर की बात मेरे दिमाग में भी नहीं आता। मुझ जैसे इंसान को भला किसी से बदतमीजी करने की क्या जरूरत आन पड़ी।”
उसने कहा और वापस आगे की तरफ जाने लगा। देवराज उसके साथ साथ चलता हुआ बोला “मगर हर्षवर्धन जी ने यही कहा है, उन्होंने कहा है कि आप को बोलने की तमीज नहीं।”
आशीष ने नजरअंदाज करने वाले अंदाज में सिर हिलाया और कहा “उनके कहने से क्या होता है, फैसला तो पिताजी को करना है, वह अपने बेटे की बात मानेंगे या अपने दोस्त हर्षवर्धन की, मैं कितने सालों से उनके साथ रह रहा हूं, उनको यह तो पता होगा ना की उनका बेटा क्या कर सकता है क्या नहीं।”
इसी के साथ आशीष ने घर के बड़े से दरवाजे को धक्का मारते हुए खोला। दरवाजे के ठीक दूसरी और उसे अपने पिता और अपनी मां सोफे पर बैठे हुए दिखाई दिए। सोम्या भी वहीं पास बैठी थी।
आशीष के आते ही सारे अपनी-अपनी जगहों से खड़े हो गए। पहले आशीष के पिता खड़े हुए थे इसके बाद आशीष की मां और फिर आशीष की बहन। आशीष की मां और आशीष की बहन का चेहरा नॉर्मल दिखाई दे रहा था, मगर आशीष के पिता के चेहरे पर काफी सारा गुस्सा था।
आशीष के पिता ने वहीं पर मौजूद पानी के गिलास को उठाया और उसे ज़ोर से आशीष की तरफ फैंक डाला। आशीष घर के अंदर आ जाने के बावजूद सोफे से काफी दूर था। आलीशान घर काफी बड़ा था तो सभी चीजें दूर दूर तक मौजूद थी।
इस वजह से कांच का गिलास फेंकने के बावजूद वो आशीष के पैरों से कुछ दूर तक ही आ पाया और वहां आकर टूट गया। टूटने के बाद कांच के गिलास के बचे टुकड़े उसके पैरों के पास आकर गोल गोल घूमने लगे।
आशीष के पिता ने गुस्से में कहा “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे दोस्त की बेटी के साथ बदतमीजी करने की। क्या मैंने तुम्हें यही परवरिश दी थी। क्या मैंने तुम्हें यही सिखाया था कि तुम इस तरह से बड़े होकर मेरे दोस्त की बेटी की बेज्जती कर दो। मुझे शर्म आती है तुम्हें अपना बेटा कहते हुए।”
आशीष ने नीचे जमीन की तरफ देखा। वहां एक कांच का टुकड़ा बिल्कुल उसके जूतों के पास था। उसने अपने जूते से कांच के गिलास के उस टुकड़े को साइड में किया और सामने की तरफ चलते हुए अपने पिता को कहा “मुझे नहीं लगता आप एक सज्जन पुरुष होने के बाद, अपने बिजनेस एंपायर में इतना समय गुजार लेने के बाद, एक 28 साल के बेटे के पिता हो जाने के बाद, कभी भी सिर्फ एक तरफ की बातें सुनकर उसपर फैसला करना चाहिए। किसी भी फैसले को लेना तभी ठीक रहता है जब दोनों तरफ की बात पता हो। आप बुद्धिजीवी हैं, और बुद्धिजीवी होने के बाद आप ऐसा करेंगे, यह तो मेरी उम्मीदों पर पानी फेरने वाली बात हो गई।”
“अच्छा तो अब तुम अपने पिता से जबान लड़ाओगे, अपने पिता को सिखाओगे क्या करना चाहिए क्या नहीं, तुम्हें पता भी है मैं क्या कर सकता हूं, मैं सिर्फ एक ही झटके में तुम्हें आसमान से सीधे जमीन पर लाकर गिरा सकता हूं, अपनी जायदाद से बेदखल कर तुम्हें कंगाल बना सकता हूं, मेरे एक इशारे पर लोग तुम्हारा नाम तक भूल जाएंगे।”
आशीष मुस्कुराया “मगर आप नहीं जानते पिताजी मैं क्या कर सकता हूं। मैं वह कर सकता हूं जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।” इसके बाद उसने टेबल की तरफ देखा। वहां पानी का एक और गिलास पड़ा था। आशीष ने पानी के उस गिलास को उठाया और उसे गौर से देखते हुए कहा “रही बात मेरे नाम की, तो शायद आप नहीं जानते, मैं जिस कंपनी में काम करता हूं उस कंपनी का नाम आशीष एंड कंपनी है, ना कि विजय देव एंड कंपनी” उसने पानी के गिलास को टेढ़ा किया और पानी को नीचे कांच की टेबल पर गिराने लगा “अब मेरा नाम इतना छोटा नाम नहीं है कि वो आपके नाम का मोहताज रहे। मुझे जायदाद से बेदखल करने के बाद शहर वाले मेरा नाम जाने या ना जाने, मगर उनके मुंह से यह बात सुनने को जरूर मिलेगी कि कोई आपके नाम का भी शहर में रहता था।”
आशीष बोला और कांच के गिलास को टेबल पर रख कर पीछे मुड़ गया। पीछे मुड़ने के बाद वह बाहर की तरफ जाने लगा। वह दरवाजे तक ही पहुंचा था कि पीछे उसके पिता विजय देव ने जोर से कहा “तो सुन लो तुम, आज के बाद, आज के बाद नहीं बल्कि अभी से, अभी से तुम मेरे परिवार से, मेरी जायदाद से, मेरी जिंदगी के हर एक हिस्से से बेदखल किए जा रहे हो। तुम्हारा हमसे कोई संबंध नहीं।”
आशीष ने यह सुना तो वह रुक गया। रुकने के बाद वो पीछे मुड़ा और अपने पिता की तरफ देखते हुए कहा “सोच लीजिए, इसमें नुकसान आपका है, क्योंकि.... मैं जिस तरह से अपनी दोस्ती जी जान से निभाता हूं... उसी तरह से दुश्मनी में भी कोई कसर नहीं छोड़ता।”
“दुश्मनी.... मैंने सुबह भी तुमसे कहा था... अब भी कह रहा हूं.... मैं तुम्हारा बाप हूं बेटा बाप... और बाप हमेशा बेटे से आगे रहता है.... तुम जहां चाहो वहां हमें आजमा लेना... तुम्हें हमसे मुंह की ही खानी पड़ेगी।”
आशीष मुस्कुराया, मुस्कुराने के बाद वह पलटा और दरवाजे से बाहर जाने लगा। दरवाजे से बाहर आ जाने के बाद जब वह अपनी कार की तरफ बढ़ा, तब उसने अपने मन में कहा “अब आप को कौन समझाए पिता जी, वक्त और हालात, ” कार के पास आते ही ड्राइवर ने दरवाजा खोला जिसे ठीक बाद आशीष उसमें बैठ गया। बैठने के बाद उसने आगे कहा “दोनों अब मेरी मर्जी से चलते हैं।”
★★★